e-Gram Swaraj ई-ग्राम स्वराज पोर्टल
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भारत में पंचायती राज व्यवस्था का गठन
ई-ग्राम स्वराज व स्वामित्व (e-Gram Swaraj and Swamitva) योजना यह एक सिंगल डिजिटल प्लेटफार्म है इस ऑनलाइन डिजिटल फार्म पर सम्पूर्ण भारत की पंचायतों की सारी जानकारी एक ही जगह मिल जायेगी, देश की सभी ग्राम पंचायतों का लेखा-जोखा एक ही डिजिटल प्लेटफार्म पर मिल जायेगा जिसकी जानकारी कोई भी व्यक्ति प्राप्त कर सकता है।
पंचायती क्षेत्रों में चलाई जाने वाली किसी भी योजना का प्रारुप देखा जा सकता है तथा योजनाओं का लाभ उढाया जा सकता है।
गांवों में कार्य करने वालें सभी अधिकारियों जैसे सरपंच, पंच तथा सभी कार्यरत कर्मचारियों का ब्यौरा मौजुद रहेगा।
यह डिजिटल प्लेटफार्म पीएफएमएस के साथ जुड़ा होने से सार्वजनिक व्यय की निगरानी भी समय पर की जायेगी। जिससे पंचायतों की पारदर्शिता में वृद्धि होगी।
ड्रोन योजना से गाँव की मैपिंग की जायेगी, जिससे गाँव का सटीक डिजिटल नक्शा तैयार किया जायेगा। तथा राजस्व खंड की सिमाओं का निर्धारण किया जायेगा।
फिलहाल योजना की शुरुआत 6 राज्यों में कि गई है आगे आने वाले दिनों में और सुधार किया जायेगा तथा सम्पूर्ण भारत में लागू कि जायेगी।
भारत में पंचायती राज का गठन
भारत में पचायती राज की शुरुआत-अग्रेजों के समय से ही भारत में स्थानीय स्वशासन देखना को मिलता था। एनसाइक्लोपीडिया ऑफ ब्रिटेनिका के अनुसार स्थानीय शासन का अर्थ ’’पूर्ण राज्य की अपेक्षा एक अनदंरुनी प्रतिबंधित एवं छोटे क्षेत्र में निर्णय लेने तथा उनको क्रियान्वित करने वाली सत्ता’’भारत सरकार ने पंचायती राज की व्यवस्था को सुदृढ़ता प्रदान करने के लिए विभिन्न कदम उढ़ाये, इसी कड़ी में 2 अक्टुबर 1952 में भारत सरकार द्वारा ग्रामीण विकास हेतु सामुदायिक कार्यक्रम चला गया था इसका उ६ेश्य ग्रामीण विकास को सुनिश्चित करने स्थानीय के महत्त्व पर बल दिया। पंचायती राज की व्यवस्था करने के लिए केन्द्र सरकार ने 1957 में बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता में समिति का गठन किया इसी समिति की सिफारिशों के आधार पर पंचायती राज व्यवस्था को सुनिश्चित कर उनके महत्व पर बल दिया गया था।
भारतीय संविधान में राज्य कि नीति निर्देशक तत्व के अनुच्छेद 40 में कहा गया है कि राज्य ग्राम पंचायतों का सगठन करने के लिए कदम उठाएगा उनको शक्तिया प्रदान करेगा उनको स्वायत्त रुप से शासन करने लिए योग्य बनायेगा।
पंचायती राज व्यवस्था पर सर्वप्रथम गौर करने वाला राज्य राजस्थान बना जिसने 2 अक्टुबर 1959 को जिला नागौर राजस्थान में प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरु ने लागू किया था। और यह सरकार की बहुत बड़ी सफलता के रुप में सामने आई। पंचायते और भी अधिक संगठित व्यवस्थित सुचारु कार्य कर सके इसके लिए 1977 में अशोक महता समिति का गठन किया गया। 1985 में जी वी. राव की अध्यक्षता में गरीबी उन्मुलन के लिए समिति का गठन किया गया, इसमें समस्याओं के निराकरण तथा पचायतों के विकास में आने वाली बाधाओं का जिक्र किया आगे चलकर 1986 में लक्ष्मीकांत सिघवी समिति, 1989 में पी के थुकन ने ग्राम पंचायतों को सवैधानिक दर्जा दिये जाने की मांग की।
पंचायती राज व्यवस्था को सवैधानिक दर्जा-73वां संवैधानिक संशोधन के तहत पंचायतों को सवैधानिक दर्जा दिया गया था तथा संविधान में भाग 9 जोड़ा गया जिसका शार्षक पंचायत रखा गया अनुच्छेद 243 से 240 तक पंचायत से सभी महत्वपूर्ण उपबंध किये गये।
पंचायत राज के संबध में एक नई ग्यारहवी अनुसूची जोड़ी गई जिसमें पंचाचती राज से सबधित 29 मद है।,
संविधान संशोधन में यह उपबंध किया गया है कि पंचायती राज त्रिस्तरीय होगी जिसमें ग्राम-स्तर, मध्यवर्ती स्तर, जिला स्तर शामिल है। इसमें उपबंध है की ग्राम सभा ऐसी शक्तियों का निर्वाह करेगी जो राज्य विधान मंडल अधिनियम द्वारा सुनिश्चित है।
इस संविधान सशोधन में अनुसूची जाति, अनुसूची जनजाति के लिए निर्वाचन हेतु आरक्षण की व्यवस्था है आरक्षित सीटो की कम से कम एक तिहाई स्थान आरक्षित होगे साथ ही पंचायती राज व्यवस्था में कम से कम एक तिहाई आरक्षण महिलाओं के लिए आरक्षित होगा तथा अध्यक्ष पद के लिए राज्य विधानमंडन आरक्षण की वयवस्था करेगा।
संविधान में यह प्रावधान है प्रत्येक ग्राम पंचायत का कार्यकाल 5 वर्ष होगा।
केन्द्र एवं राज्य सरकार को मिलकर गॉव के विकास पर अभी ध्यान देने की आवश्यकता है; गाँवों से शहरों की तरह पलायन अब भी जारी है कारण गाँवों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव जैसे रोजगार की कमी, शिक्षा, स्वास्थ्य, संचार, परिवहन आदि का प्रयाप्त अभाव पाया जाता है।
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