एल-निनो El Nino

एल-निनो (El Nino)

एल-निनों (El Nino)
मध्य प्रशांत महासागर की गर्म जलधाराएं दक्षिणी अमेरिका के तट की और प्रवाहित होती है और पीरु की ठंडी धाराओं का स्थान ले लेती है पीरु के तट पर इन गर्म धाराओं की उपस्थिति एल-निनों कहलाता है।
एल-निनों का शाब्दिक अर्थ बालक ईसा  है, क्योकि यह धारा दिसंबर के महीने में क्रिसमस के आस-पास नजर आती है। पेरु दक्षिणी गोलार्द्ध में दिसंबर गर्मी का महीना होता है। एल-निनों को विपरीत धारा (counter current)  के नाम से जाना जाता है; वर्तमान में एल-निनों को एक मौसमी घटना या परिघटना (weather event or phenomenon) के रुप में लिया जाता है। इसका संबंध उष्ण कटिंबंधी पूर्वी प्रशांत महासागरीय जल तापमान में वृद्धि से है एल-निनों वैश्विक जलवायु में विनाशक विसगतिया उत्पन्न करता है जिसके कारण पेरु तट पर सामान्य से बहुत अधिक वर्षा होती है।

ला-निनो (La Nina)
इसका अर्थ है ठंडी बहन ये एल-निनों का विपरीतात्मक शब्द है जब पेरु तट के निकट जल का तापमान 2-4 डिग्री शीतलित हो जाता है।
सामान्य वर्ष में पेरु के तट पर अपतटिय दक्षिणी-पूर्वी व्यापारिक पवनों के प्रभाव से शीत जल का उदवेलन होता है एवं तापमान सामान्य से 2-3 डिग्री कम हो जाता है। एवं ये पवने  गर्म विषुवतीय जल को प्रभावित कर इण्डोनेशिया के पास एकत्रित करते है इससे यहाँ का तापमान 2-3 डिग्री उच्च एवं समुद्र का तल लगभग 90 सेंटीमीटर ऊपर उढ़ता है। इस प्रकार इण्डोनेशिया पर निम्न दाब (L.P)  केन्द्र एवं पेरु तट पर उच्च दाब (H.P) केन्द्र का निर्माण होता है।
इण्डोनेशिया तट से उढ़ने वाली वायु पेरु व सोमालिया के तट के पास अवतलित होती है एवं उच्च दाब का निर्माण करती है। 'उष्ण कटिबंधीय कोशिका' का निर्माण होती है।

Positive Indian dipole

हिन्द महासागर के पश्चिमी भाग में उच्चदाब एवं पूर्वी हिन्द महासागर में निम्न दाब प्राप्त होता है जिसे Positive Indian dipole कहते है। इससे भारतीय मानसून अच्छा होता है।
एल-निनों वर्ष में दक्षिणी पूर्वी व्यापारिक पवनों के क्षिण होने से पेरु तट पर शीत जल का उदेवलन बंद हो जाता है जिससे पेरु तट पर उच्च दाब की स्थिति एवं इण्डोनेशिया तट पर निम्नदाब की स्थिति एवं इण्डोनेशिया तट के निकट जल का संचयन जैसी प्रकिया समाप्त हो जाती है एवं इण्डोनेशिया के तट पर 2-3 डिग्र्री  तापमान कम हो जाता है तथा उच्चदाब केन्द्र विकसित होती है जिससे उपरी वायुमंडल क्षेत्र में इण्डोनेशिया से पेरु तट की और पवने गतिशील होती इसे दक्षिणी दौलन कहते है।

यहाँ वाकर शैल के व्युत्क्रमण से विषुवतिय पवन इण्डोनेशिया से पेरु की और सक्रिय होती है जो समुद्र तल से 2-3 सेंटीमीटर नीचे गर्म अंतः धारा का निर्माण करती है जिसे केलविन तरंग कहते है। यह केलविन धारा पेरु तट से टकराकर पुनः दक्षिणी-पश्चिमी की और लौटती है जिसें रोजवी तंरग कहते है।

इसी प्रकार उत्तरी प्रशांत महासागर में रेजवी तंरग से जल उत्तरी मध्य प्रशांत महासागर में एकत्रित हो जाता है इस दौरान अलनिनों प्रभाव  समाप्त  हो जाता है जिससे पेरु तट पर पुनः ठंडें जल का उदवेलन (Upwalling) तथा इण्डोनेशिया तट के पास भी ठंडा जल प्राप्त होता है। इस प्रकार मध्य प्रशांत महासागर  में गर्म जल तथा पूर्वी  व पश्चिमी प्रशांत महासागर में शीत जल की दशा बनती है जिसे मोडोकी  कहते है जिसके प्रभाव से जापान तट पर  उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की सख्या बढ़ जाती है।

एल-निनों का भारतीय मानसून पर प्रभाव
एल-निनों  प्रभाव से इण्डोनेशिया के पूर्वी तट पर उच्चदाब की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिससे Positive Indian dipole विभंग जो जाता है जिससे अफ्रीका के पूर्वी तट पर उच्चदाब की स्थिति कमजोर होती है एवं दक्षिणी-पश्चिमी मानसून क्षीण होता है।




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