अपक्षय क्या है? अपक्षय के प्रकार, अपक्षय को प्रभावित करने वाले कारक
अपक्षय (weathering) क्या है? अपक्षय के प्रकार, अपक्षय को प्रभावित करने वाले कारक
चट्टानों का अपने स्थान पर भौतिक रासायनिक एवं जैविक कारकों से विखंडन एवं वियोजन की क्रिया को अपक्षय कहते है।
अपक्षय को प्रभावित करने वाले कारक-
(1) संरचना-
चट्टान विभिन्न खनिजों का समुच्चय होती है अतः इन खनिजों की कठोरता दृढ़ता एवं भगुरता भिन्न-भिन्न होती है। मुलायम चट्टानों का अपक्षय आसानी से होता है।
मोहो ने कठोरता के आधार पर खनिजों को 10 भागों में विभाजित किया है।
- हिरा सबसे कठोर
- कोंरडम
- टोपोज
- क्वार्टज
2 जलवायु-
अपक्षय को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले कारकों में से एक है।
(A) उष्ण कटिबंधिय आर्द्र जलवायु- यहाँ तापमान एवं आर्द्रता की अधिकता के कारण रासायनिक अपक्षय अधिक होता है।
(B) शुष्क जलवायु- यहाँ पर आर्द्रता की न्युनता एवं तापमान की अधिकता के कारण चट्टानों में फैलाव एवं सिकुड़न की क्रिया होती है जिससे यहाँ मुख्यतः भौतिक अपक्षय अधिक होता है।
(C) शीतोष्ण जलवायु- यहाँ पर रासायनिक अपक्षय अधिक होता है।
(D) शीत/टुंड्रा जलवायु- यहाँ पर भौतिक अपक्षय अधिक होता है। ध्रुवीय क्षेत्रों में वर्ष भर बर्फ के हिमाच्छादित होने के कारण अपक्षय की क्रिया न्युनतम होती है।
अपक्षय के प्रकार
(1) भौतिक यांत्रिक अपक्षय- बिना किसी रासायनिक परिवर्तनों के चट्टानों में विखंडन एवं वियोजन की क्रिया को भौतिक अपक्षय कहते है।
प्रकार- 1 तापीय विस्तार एवं सिकुड़न 2 तुषार की क्रिया-शीतकाल में मरुस्थलीय एवं शीत क्षेत्रों में दिन के समय चट्टानें के रन्ध्रों में जल भर जाता है ये जल रात्री में अत्यधिक न्युन तापमान के कारण बर्फ/हिम में परिवर्तित हो जाता है। चूँकी बर्फ का आयतन जल से अधिक होने के कारण चट्टानों में दबाव उत्पन्न होता है जिससे भौतिक अपक्षय प्राप्त होता है। 3 चट्टानों के उपर से भार हटने के कारण अपक्षय
(2) रासायनिक अपक्षय - रासायनिक क्रिया के कारण से चट्टानों के विखंडन एवं वियोजन की क्रिया को रासायनिक अपक्षय कहते है। रासायनिक अपक्षय का मुख्य साधन वर्षाजल एवं वायुमंडलीय गैसे है जिनमें आक्सीजन व CO2 प्रमुख है।
तापमान अधिक आर्द्रता कम तो रासायनिक अपक्षय अर्थात् जब तापमान एंव आर्द्रता अधिक होती है तो रासायनिक अपक्षय होगा।
प्रकार-
(A) विलयन- चट्टानों में विभिन्न खनिजों का पानी में घुल जाने की क्रिया को विलयन कहते है। शुद्ध जल अच्छा विलायक नही होता है। इसी कारण चुना पत्थर शुद्ध जल में आसानी से नही घुलता है। जबकि CO2
(B) आक्सीजन- इस प्रक्रिया के अंनर्गत ऑक्सीजन मिश्रित जल का प्रभाव आता है आर्द्रता बढ़ने पर लौहा खनिज ऑक्सीजन से मिलकर आक्साईड में परिवर्तित होता है। जैसे- लौहे पर जंग लगने की प्रक्रिया
(C) हाइट्रोजनीकरण- जलयोजन की प्रक्रिया में चट्टानों में उपस्थित खनिज जल को सोख लेता है जिससे आयतन में वृद्धि होती है तथा रासायनिक परिवर्तन होता है जैसे ग्रेनाईट चट्टानों में स्थित फेल्सफार खनिज कायोलिन मिट्टी में परिवर्तन हो जाता है।
(D) काबोनेटीकरण- जल एवं सीओ2 मिलकर हल्का कार्बोनिक अम्ल बनाते है ये अम्ल उन खनिजों पर आक्रमण करता है जिनमें लौहा, कैल्शियम, मैग्नीशियम, सोडियम पोटेशियम के तत्व विदेमान रहते है।
(E) जैविक क्रिया- मृत जैविक पदार्थो के सड़ने-गलने से तेजाबों का निर्माण होता है। जिससे रासायनिक अपक्षय में तीव्रता आती है।
जैविक अपक्षय- ये विभिन्न जीव जंतुओं द्वारा होता है।
मानव जनित अपक्षय
सामुहिक स्थानांतरण/क्षरण- गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से विखंडित और विघटित चट्टानों के नीचे खिसकने की प्रक्रिया को सामुहिक क्षरण कहते है। इसमें केवल गुरुत्वाकर्षण के कारण मलबों का ढ़ाल के सहारे स्थानांतरण होता है। जैसे भू-स्खलन
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