उत्तर तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वमाला The Northern and North-eastern Mountains

  उत्तर तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वमाला  The Northern and North-eastern Mountains

 प्रशन-  भारत को भू-आकृतिक प्रदेशों में विभक्त करते हुए हिमालय प्रदेश का विस्तृत विवरण दीजिए।

                                                     भारत के भौतिक प्रदेश
भू-वैज्ञानिक संरचना व शैल समुह की विभिन्नता के आधार पर भारत को तीन भू-वैज्ञानिक खंडों में विभाजित किया जाता है जो भौतिक लक्षणों पर आधारित है।
प्रायद्वीपीय खंड
हिमालय और अन्य अतिरिक्त प्रायद्वीपीय पर्वतमालाएँ
सिंधु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान

उच्चावचीय एवं संरचना के आधार पर भारत को निम्नलिखित भू-आकृतिक खंडों में बाटा गया है।

  1. उत्तर तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वमाला
  2. उत्तरी भारत का मैदान;
  3. प्रायद्वीपीय पठार;
  4. भारतीय मरुस्थल
  5. तटीय मैदान
  6. द्वीप समूह

उत्तर तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वतमाला-
उत्तरी पर्वतीय प्रदेश को मगजतं चमदपदेंसं ;बाहृय प्रायद्वीपद्ध कहते है। उत्तर पर्वतीय प्रदेश का विस्तार 5 लाख वर्ग किमी. है।
प्रारम्भ में प्रायद्वीपीय भारत मेडागास्कर द्वीप के पास स्थित था जोक प्लेट विवर्तन के कारण धीरे-धीरे उत्तरी-पूर्वी दिशा की और गति करने लगा जिससे वह टेथिस सागर के दक्षिण में आ गया वहाँ पर प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ तथा अगारालैण्ड की नदियों द्वारा टेथिस सागर में अवसाद जमा होने लगा और अंत में टेथिस सागर अवसादों से भर गया तत्पश्चात् यूरेशियन तथा इण्डो- आस्ट्रेलियन प्लेट आपस में टकराने से हिमालय का निर्माण हुआ।
प्रायद्वीपीय भारत उत्तर-पूर्वी की तरफ गति करने के कारण हिमालय की चौड़ाई पूर्व की तरफ कम तथा पश्चिम की तरफ अधिक है। क्योकि पूर्व की तरफ दबाव व संपीडन ज्यादा है। संपीडन के कारण लगातार हिमालय का उत्थान हो रहा है जिससे हिमालय की ऊँचाई बढ़ रही है।

(1) ट्रांस हिमालय
ट्रास हिमालय क्षेत्र के अंतर्गत कराकोरम, लद्दाख, जास्कर आदि पर्वत श्रेणियाँ आती है। इनका निर्माण हिमालय से पहले हो चुका था। कराकोरम श्रेणी की सबसे ऊँची चोटी केटु या गोडविन ऑकटिल है इसकी ऊँचाई 8611 मीटर है। इसकी खोज गोडविन ऑस्टीन ने की थी ये विश्व की दूसरी सबसे ऊँची चोटी है। कराकोरम श्रेणी में कई दर्रे है जिसनें दो दर्रे महत्वपूर्ण माने गये है जिनमें कराकोरम दर्रा यह दर्रा भारत का सबसे ऊँचा दर्रा है जो चीन तथा लद्दाख के मध्य है। दूसरा अगहिल दर्रा; इस दर्रा को कृष्णागिरि भी कहा जाता है कराकोरम के पत्थरों का रंग काला होने के कारण इसका यह नाम पड़ा। यहां राकापोशी चोटी है जिसकी ऊँचाई 7788 मीटर है यह विश्व की सबसे नुकुली तीव्र ढ़ाल वाली चोटी है। सिंधु नदी लद्दाख व जास्कर श्रेणी के मध्य से प्रवाहित होती है।  लद्दाख श्रेणी में खर्दुगला दर्रा व जास्कर श्रेणी में फोटुला दर्रा स्थित है। कपसु व देवसाई का मैदान जास्कर श्रेणी में स्थित है। कराकोरम श्रेणी की रचना क्रिटेशियस काल के दौरान हुआ। ट्रांस हिमालय बृहद हिमालय से इण्डों साग्पों जोन आईटीसीजेड के द्वारा अलग होता है।

(2) हिमालय
महान हिमालय-इसकी लंबाई 2500 किमी. है ये हिमालय की सबसे ऊँची श्रेणी है तथा इसकी ऊचाई 600 मीटर है जब की औसत ऊँचाई चौड़ाई 120-190 किमी है। विश्व के प्रायः सभी ऊँचे शिखर इसी में स्थित है।
महान हिमालय में सर्वाधिक आग्नेय व कायान्तरित चट्टान परतों अपरदन के कारण नष्ट हो गयी है।
महान हिमालय की प्रमुख चोटियाँ-
पश्चिम से पूर्व या उत्तर से दक्षिण क्रम से नंगा पर्वत ;जम्मू और कश्मीरद्ध बंदरपुछ कामेट बद्रीनाथ त्रिशुल नंदादेवी ये पाँचों ;उतराखंड में स्थित है।द्ध धौलाधर, अन्नापूर्णा, मन्शालू, गौरीशंकर, एवरेस्ट 8848 मीटर  मकालू (ये 6 नेपाल में स्थित है।) कंचनजुगा 8598 मीटर (सिक्किम) कुलाकागाड़ी (भूटान) नामचा बरवा (चीन)
महान हिमालय के कुछ महत्वपूर्ण दर्रे भी स्थित है जिसमें है; जम्मू और कश्मीर के दर्रे जोजीला दर्रा ये दर्रा श्रीनगर व लद्दाख जो जोड़ता है, बुर्जिला, कालापानी, बाबुसर आदि दर्रे हे। हिमाचल प्रदेश के दर्रे के दर्रो में शिपला जो तिब्बत व शिपला को जोड़ता है, बड़ा लाचाला दर्रा मंडी व लेह व लद्दाख को जोड़ता है व रानी शोला प्रमुख है। उत्तराखंड के दर्रो में यागला, मुलिंग ला, माना ला, निति ला, लिपु ला प्रमुख है। सिक्किम के दर्रो में नाथुला जो सिक्किम और चीन के मध्य है, जलेपा सिक्किम और भूटान को जोड़ता है। अरुणाचल प्रदेश के दरों में बूम ला, बोमडिला, तुगा, याग्यार्प, कागड़ी, कारपोला, दिफू, हफुगन प्रमुख दर्रे है। महान हिमालय में गलेशियर हिमनद भी है जिनमें उत्तराखंड के यमुनोत्री, गंगोत्री, मिलान, पिण्डारी, चौड़ाबाड़ी व सिक्किम का जेमू गलेशियर प्रमुख है।
महान हिमालय के क्षेत्रों में कुछ खानाबदोश जनजातियां भी निवाश करती ह;ै प्रमुख है भोटिया जनजाति यह महान हिमालय की घाटियों निवाश करती है ये खानाबदोश जनजाति है जो ग्रीष्म ऋतु में बुगयाल ऊँचाई पर स्थित घास के मैदान में चले जाते है औश्र शीत ऋतु में घाटियों में लौट आते है।
लेपचा जनजाति- ये जनजाति दार्जिलिंग और सिक्किम हिमालय के ऊँचे पर्वतो पर निवाश करती है।
अरुणाचल हिमालय में पश्चिम से पूर्व में बसी हुई जनजातियाँ-मोनपा, डफ्फला, अबोर, मिशमी, निशी नागा है।
दार्जिलिंग हिमालय में दुआर स्थालाकृतिया पाययी जाती है जिका उपयोग चाय के बागानों के लिए किया जाता है। हिमालय की घाटियों में जो हरे-भरे मैदान पाये जातो है उन्हे जम्मू-कश्मीर में बुग्याल पयार कहा जाता है। कश्मीर हिमालय करेवा के लिए प्रसिद्ध है करेवा हिमोढ़ द्वारा निक्षेपित उपजाऊ मैदान है जहाँ जाफरान केसर की खेती की जाती है। इसका निर्माण प्लीस्टोसीन काल में हुआ था इसमं लिग्ननाइट कोयले निक्षेप पाये जाते है।
       2. लघु हिमालय 
लघु हिमालय अपने स्वास्थ्य वर्धक स्थानों के लिये जाना जाता है; यह सीमांत क्षेत्र उइज के द्वारा पृथक होता है। शिमला, कुल्लु, मनाली, मैसुरी व दार्जिलिग, रानीखेत लघु हिमालय के हि भाग है।  लघु हिमालय में पायी जाने वाली पर्वत श्रेणीयाँ क्रमा अनुसार- पीरपंजाल श्रीणी, धौलाधर, कुमायु, मसुरी, नागटिब्बा, महाभारत, डोक्या रेंज प्रमुख है। पीरपंजाल श्रेणी सबसे लंबी श्रेणी है जो झेलम से व्यास नदी तक है। पीर पंजाल श्रेणी में पाये जाने वाले दर्रे जिनमें पीरपंजाल, बनियाल यह दर्रा जम्मू को कश्मीर से जोड़ता है, बारामूला प्रमुख है; बनियाल दर्रे में जवाहर सुरंग बनायी गयी है। पीरपंजाल और जास्कर श्रेणी के बीच कश्मीर घाटी पाई जाती है। जो 1700 मीटर की ऊँचाई पर सि्ित एक वृहद द्रोणी है यह बृहद हिमालय का भाग है।

       3. शिवालिक
इसे निम्न या बाहृय हिमालय के नाम से जाना जाता है। यह श्रेणी खंडित रुप में पायी जाती है। शिवालिक की प्रमुख श्रेणीयों में जम्मू हिल्स, किराना हिल्स हिमाचल प्रदेश, शिवालिक उत्तराखंड, चुरिया, मूरिया, सोमेश्वर नेपाल, बगांल द्वार सिक्किम उफला, मिशी, अबोर, मिशमी अरुणाचल प्रदेश तथा ये हिमालय का नवीनतम भाग है पश्चिम में इन्हे दुन या द्वार कहा जाता है। जैसे देहरादून, हरिद्वार आदि। शिवालिक के निचले भाग को तराई के नाम से जाना जा ही तराई क्षेत्र दलदली अइौर वन आच्छादित प्रदेश है तराई से सट्टे दक्षिणी भाग में बृहद सीमावृत्ती भ्रंश ळठज् ळतमंज इवनदकंतल जीतनेज  है ये ळठज्  कश्मीर से असम तक विस्तृत है। प्राचीन काल में शिवालिक के स्थान पर इण्डों बर्मा नदी बहती थी।

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