उत्तर का विशाल मैदान; उत्पत्ति एवं प्रादेशिक वर्गीकरण
उत्तर का विशाल मैदान; उत्पत्ति एवं प्रादेशिक वर्गीकरण
भारत के भौतिक प्रदेश
भू-वैज्ञानिक संरचना व शैल समुह की विभिन्नता के आधार पर भारत को तीन भू-वैज्ञानिक खंडों में विभाजित किया जाता है जो भौतिक लक्षणों पर आधारित है।प्रायद्वीपीय खंड
हिमालय और अन्य अतिरिक्त प्रायद्वीपीय पर्वतमालाएँ
सिंधु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान
उच्चावचीय एवं संरचना के आधार पर भारत को निम्नलिखित भू-आकृतिक खंडों में बाटा गया है।
- उत्तर तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वमाला
- उत्तरी भारत का मैदान; The Northern Plain
- प्रायद्वीपीय पठार;
- भारतीय मरुस्थल
- तटीय मैदान
- द्वीप समूह
इसे सिंधु-गंगा ब्रह्मपुत्र का मैदान भी कहा जाता है। इसका विस्तार 7.50 लाख वर्ग किमी. में पाया जाता है इसकी लम्बाई 2400 किमी. पश्चिम की औश्र चौड़ाई 500 मीटर पूर्व की और चौड़ाई 100 किमी इसकी गहराई 2000 मीटर है।
उत्तरी भारत का मैदान |
ये मैदान जलोढ़ अवसादों से निर्मित है तथा टेथिस भू-सन्नति के निरंतर संकरे होने एवं नदियों द्वारा लाये गये अवसादों से उसमें निरंतर जमाव की प्रक्रिया इस मैदानी भाग का निर्माण हुआ। अम्बाला के आस-पास की भूमि इस मैदान में जल विभाजन का कार्य करती है क्योकि इसमें पूर्व की नदियाँ बगाल की खाड़ी में एवं पश्चिम की नदियाँ अरब सागर में गिरती है।
विशिष्ट धरातलीय स्वरुप के आधार पर इस मैदान को चार भागों में बाटा गया है।
इनका सही क्रम-
भाबर- विलुप्त
तराई- जैव विविधता
बागर- जलोढ़
खादर- मिट्टी
डेल्टा- जलोढ़ मिट्टी
- भाबर प्रदेश- भाबर प्रदेश की लंबाई शिवालिक से तिस्ता नदी तक है इसका विस्तार 8-16 किमी. तक की चौड़ाई में है। ककंड़ पत्थरों बजरी की अधिकता के कारण इसमें इतनी अधिक पार-गम्यता है की नदियाँ यहाँ विलुप्त हो जाती है।
- तराई प्रदेश- यह प्रदेश भाबर प्रदेश के दक्षिण में स्थित है इसकी चौड़ाई 10 से 20 किमी तक पाई जाती है अत्यधिक आर्द्रता के कारण तराई प्रदेश दलदली क्षेत्र है। तराई प्रदेश घने वनों का प्रदेश है एवं यह जैव विविधता के विशाल भंडार पाये जाते है।
- बागर प्रदेश- ये मैदानी भागों का उच्च भाग है जहाँ सामान्य बाढ़ का पानी नही पहुँच पाता है पुराने जलोढ़ों से इनका निर्माण हुआ अतः यहाँ प्राचीन जलोढ़ मिट्टी पायी जाती है। बागर का सर्वाधिक विस्तार उत्तर प्रदेश में है।
बागर प्रदेश में अधिक सिचाई के कारण कई प्रदेशों में मृद्रा की उपरी सतह पर नमक एवं लवणों का जमाव हो जाता है। जिसे रेह या कल्लर कहा जाता है। भूड़ इस प्रदेश में ऊपर की मिट्टी अलग हो जाती है तो जो संरचना मिलती है उसे भूड़ के नाम से जाना जाता है।
- खादर- ये नवीन जलोढ़ मृदा का प्रदेश है जहाँ प्रतिवर्ष नवीन मृदा का निर्माण का जमाव होता है। इस प्रदेश को कच्छारी प्रदेश या बाढ़ का मैदान भी कहा जाता है। खादर का सर्वाधिक विस्तार बिहार, पं. बंगाल में पाया जाता है। पंजाब में खादर मैदान को बेट के नाम से जाना जाता है। पटना में इसके गर्त को जल्ला कहा जाता है। जब तली पानी से भर जाती है तो झीलों के समान दिखाई देती है। जिसे ढ़ाढ़ कहते है।
विशाल मैदान का प्रादेशिक वर्गीकरण-
पंजाब- हरियाणा का मैदान- इसे मालवा का मैदान भी कहा जाता है इस क्षेत्र में स्थित सिंधु नदी व इसकी सहायक नदियों के मध्य दो-आब क्षेत्र पाया जाता है। पंजाब हरियाणा मैदान की उत्पत्ति सतलुज व्यास एवं रावी नदियों के निक्षेपण कार्यो से हुई। इसका विस्तार उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम है।
सिंधु नदी व उसकी सहायक नदीयों के मध्य दो-आब क्षेत्र उत्तर से दक्षिण या पश्चिम से पूर्व क्रम-
राजस्थान का मैदान- इसमें अरावली पर्वत के पश्चिम भाग में स्थित मरुस्थली और बागड़ क्षेत्र को सम्मिलित किया जाता है।
गंगा का मैदान- यह मैदान 1400 किमी. की लंबाई में पश्चिम में यमुना नदी से पूरब में बांग्लादेश की पश्चिमी सीमा तक तथा शिवालिक एवं प्रायद्वीपीय उच्च भूमि के बीच फैला हुआ है। इसका ढ़ाल उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की और है। जो गंगा और इसकी सहायक नदियों दक्षिण में यमुना एवं सोन तथा उत्तर में रामगंगा, घाघरा, गंडक एवं कोसी आदि द्वारा अपवाहित किया जाता है। गंगा के मैदान का 1/2 भाग उत्तर प्रदेश तथा शेष 1/2 भाग पंजाब व हरियाणा बिहार व शेष (पं. बंगाल बहुत कम) है।
गंगा के मैदान को तीन भागों में बांटा गया है। पहला उपरी गंगा का मैदान दुसरा मध्य गंगा का मैदान तीसरा निचली गंगा का मैदान शामिल है। गंगा के मैदान को स्थालाकृतिक विशेषताओं के आधार पर तीन स्तरीय इकाईयों में विभक्त है पश्चिम उत्तर प्रदेश में रोहेलखंड का मैदान, पूर्वी उत्तर प्रदेश में अवध का मैदान, पश्चिम बंगाल में राहा का मैदान, बिहार में मिथिला का मैदान है।
ब्रह्मपुत्र का मैदान-इसका विस्तार मेघालय के पठार से हिमालय के बीच पाया जाता है। यह मैदान गंगा के डेल्टा के पूर्व में सदियां से लेकर पश्चिम में धुबरी तक फैला है। पश्चिम को छोड़कर ये क्षेत्र चारों और पर्वत श्रेणियों से घिरा हुआ है। इसका निर्माण हिमालय के उत्थान के दौरान हुआ है। इस मैदान का ढ़ाल दक्षिण-पश्चिम की और बंगाल की खाड़ी की तरफ है। ढ़ाल प्रवणता की कमी के कारण ब्रह्मपुत्र नदी अत्यधिक गुफित नदी हो गई है जिससे अनेक द्वीपों का निर्माण हुआ जिनमें माजुली द्वीप प्रमुख है।
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