अविश्वास प्रस्ताव क्या है? इसे लाने कि प्रक्रिया क्या है, तथा इसका राजनीतिक प्रभाव।
अविश्वास प्रस्ताव क्या है? (No Confidence Motion) इसे लाने कि प्रक्रिया क्या है, तथा इसका राजनीतिक प्रभाव।
इतिहास
भारत में 17 अप्रेल 1952 में पहली बार लोकसभा का गठन हुआ था और सदन के इतिहास में पहली बार अगस्त 1963 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरु कि सरकार के खिलाफ पहली बार अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। ये प्रस्ताव आचार्य जेबी कृपलानी ने रखा। इस प्रस्ताव के पक्ष में 62 वोट और विरोद्ध में 347 पड़े, जिसके कारण यह प्रस्ताव पास नही हो सका। भारत में अविश्वास प्रस्ताव के कारण गिर जाने वाली सरकारों का इतिहास भी रोचक है। पहली बार मोरारजी देसाई सरकार के खिलाफ दो बार अविश्वास प्रस्ताव लाया गया पहली बार तो वो बच गये, लेकिन 1978 में दुसरी बार उनको पता चल गया कि वे बहुमत खो चुके है। अतः मोरार जी देसाई ने अविश्वसा प्रस्ताव पारित होने से पहले ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
1979 में चैधरी चरण सिंह की सरकार के खिलाफ सदन में अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस जारी किया गया। इस नोटिस के पारित होने से पहले ही उन्होने अपना त्याग पत्र राष्ट्रपति को सौप दिया। इसी तरह 1989 में बीजेपी समर्थित राष्ट्रीय मोर्चा सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित किया। इसका कारण था बीजेपी द्वारा अपना समर्थन वापस ले लिया जिसके कारण सरकार कमजोर पड़ गई, इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री वी पी सिंह ने इस्तिफा दे दिया। 1993 मेें नरसिम्हा राव सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया, लेकिन सरकार किसी तरह बच गई। 1997 में काग्रेस सयुक्त मोर्चा सरकार से समर्थन वापस ले लिया जिस कारण संसद में सरकार को विश्वास मत हासिल नही हो सका और एच डी देवगौड़ा सरकार को ईस्तीफा देना पड़ा। मार्च 1998 में इंद्र कुमार गुजराल की संयुक्त मोर्चा सरकार ने सदन में बहुमत खोने के बाद ईस्तीफा दे दिया। 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार सिर्फ 1 मत से विश्वास मत हासिल करने से चुक गई। जिस कारण अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को ईस्तीफा देना पड़ा। इससे पहले 1996 में वाजपेयी सरकार बहुमत नही जुटा पाई थी, अतः मत विभाजन से पहले महज 13 दिन में उनको इस्तीफा देना पड़ा। जुलाई 2009 में अमेरिका के साथ परमाणु डील के मुद्दे पर काग्रेस को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा। मनमोहन सरकार ने कम अंतर से अपना मत साबित कर सरकार को बचा लिया
अविश्वास प्रस्ताव क्यों लाया जाता है
आन्ध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिये जाने के मुद्दे पर वाईएसआर कांग्रेस सयुक्त रुप से लोकसभा में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्र्रस्ताव का नोटिस दिया संसद में सरकार को पूर्ण बहुमत हासिल है। लोकसभा में कुल बेंच में बहुमत के लिये 272 सांसद चाहिए, सिर्फ बिजेपी सांसदों की संख्या इससे कही ज्यादा है। यदि सहयोगी पार्टियों के सदस्यों को जोड़ लिया जाये तो सरकार बहुमत साबित कर देगी। यदि संसद में अविश्वास प्रस्ताव आता भी है, तो इसका राजनीतिक प्रभाव जरुर पड़ेगा। इससे यह स्पष्ट हो जायेगा कि कोनसा दल सरकार के साथ है और कोनसा दल विपक्ष में है।
अविश्वास प्रस्ताव कि अहमियत
अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा में मत्रिपरिषद के खिलाफ विपक्ष का अहम हथियार होता है। अगर यह पारित हो जाता है तो मंत्रिपरिषद को इस्तीफा देना पड़ता है। अगर त्याग पत्र न दे तो नियमा अनुसार राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद को बर्खास्त कर देगें। दरअसल संसदीय प्रणाली में सरकार बनाने के लिए संसद में बहुमत हासिल होना जरुरी है बहुमत प्राप्त सरकार को संसद मेें कई बार बहुमत साबित करना पड़ता है। इसके लिए सरकार विश्वास प्रस्ताव ला सकती है या विपक्ष बहुमत साबित करने को कह सकता है। कई बार विपक्ष इसलिए भी अविश्वास लाती है की अहम मुद्दों पर सरकार को चर्चा के लिए बाध्य किया जा सकें।
अविश्वास प्रस्ताव लाने कि प्रक्रिया
लोकसभा के नियम 198 के आधार पर अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है। दरअसल संविधान के अनुच्छेद 75 में कहा गया है कि मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है। अतः स्पष्ट है कि अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा में ही लाया जा सकता है।
अविश्वास प्रस्ताव कि प्रकृति कुछ ऐसी है कि इसे कोई विपक्ष का सदस्य ही ला सकता है। सदन में अगर किसी भी दल को यह लेगें कि कि सरकार विश्वास मत खो चुकी है तो अविश्वास प्रस्ताव ला जा सकता है।
लोकसभा कि नियमावली
लोकसभा कि नियमावली में अविश्वास प्रस्ताव कि पुरी प्रक्रिया को सुझाया गया है जिसके तहत अविश्वास लाया जाता है।
लोकसभा के 198 (क) नियमाअनुसार अध्यक्ष के बुलाने पर प्रस्ताव कि अनुमति मागनी होती है।
लोकसभा के 198 (ख) के नियमाअनुसार अनुमति वाले सदस्य को उसी दिन सुबह 10 बजे तक प्रस्ताव की लिखित सुचना देनी होगी। प्रस्ताव सुचना अगर 10 बजे के बाद आई है तो उसे अगले दिन कि सुचना माना जायेगा।
लोकसभा के नियम 198 (2) के अनुसार प्रस्ताव के पक्ष मेें कम से कम 50 सदस्यों का होना जरुरी है। यदि प्रस्ताव के पक्ष में 50 से कम सदस्य खड़े हो तो अध्यक्ष अनुमति नही देता है।
लोकसभा के नियम 198 (3) के अनुसार अगर प्रस्ताव प्रस्तुत करने की अनुमति मिलती है तो अध्यक्ष चर्चा के लिए कोई एक दिन या किसी एक दिन का विशेष भाग तय करते है।
लोकसभा के नियम 198 (4) के अनुसार चर्चा के अंतिम दिन अध्यक्ष मतदान के जरियें निर्णय को घोषित करता है। जबकि 198 (5) के अनुसार अध्यक्ष को भाषणों कि समय सीमा तय करने का अधिकार मिला हुआ है।
अगर सदन में अविश्वास प्रस्ताव पारित कर दिया जाता है तो मंत्रिपरिषद को त्याग पत्र देना पड़ता है और सरकार गिर जाती है।
दुसरी और विश्वास प्रस्ताव के लिए लोकसभा कि नियमावली मे कोई विशेष उपबंध नही दिये गये है, लेकिन विश्वास प्रस्ताव सरकार कि और से लाया जाता है। जिससे सरकार यह साबित कर सके कि उसके पास बहुमत है।
कई बार राष्ट्रपति प्रधानमंत्री से सदन में अपना बहुमत साबित करने को कह सकता है। जिसके लिए सरकार विश्वास प्रस्ताव लाती है।
अविश्वास प्रस्ताव संसदीय परम्परा का अहम हिस्सा है। आमतौर पर विपक्ष हमेशा सरकार को कमजोर होने कि उम्मीद लगाये बैठा रहता है जब भी विपक्ष को लगता है कि सरकार को मुश्किल में डालने लायक सांसदों का समर्थन है, तो वों अविश्वास प्रस्ताव लेकर आती है। इसके समर्थन मे वो सदस्य आते है जिन्हे सरकार में विश्वास नही होता है। हालांकि अक्सर विपक्ष को सरकार कि संख्या बल के आधार पर मात दे दी जाती है।
देश में अविश्वास प्रस्ताव पेश होने के कई उदाहरण है। इंदिरा गाँधी ने अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया था सदन में सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव रखने का रिकार्ड सीपीएम नेता ज्योतिर्मय बसु के नाम दर्ज है। अटल बिहारी वाजपेयी ने विपक्ष में रहते हुये दो बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किया।
संसद में अविश्वास प्रस्ताव के अलावा भी सार्वजनिक महŸव के मामलों के बिना कई कदम उठाने की व्यवस्था है जिनमें अनेक प्रस्ताव लाने कि प्रावधान है। इन प्रस्तावों का मतलब सरकार को उसके काम के प्रति आगाह करने से है।
संसद में पेश होने वाले दुसरे प्रस्ताव
स्थगन प्रस्ताव-
लोकसभा के नियम 56 के अनुसार देश कि किसी गंभीर व महत्वपूर्ण चर्चा के लिए सदनमें स्थगन प्रस्ताव लाया जाता है। ऐसे प्र्रस्ताव के लिए सदन की सारी नियमित कार्यवाही रोक दि जाती है यानी स्थगित कर दि जाती है इसलिए इस स्थगन प्रस्ताव कहते है स्थगन प्रस्ताव पर चर्चा आमतौर पर शाम चार बजे शुरु होती है। स्थगन प्रस्ताव कि मंजुरी के लिए कमसे कम 50 सदस्य की सहमति जरुरी होती है। अगर स्थगन प्रस्ताव स्वीकार हो जाता है, तो इसे सरकार की निंदा मानी जाती है हालांकि सरकार को इसमें कोई खतरा नही होता है।
ध्यानाकर्षण प्रस्ताव-
संसद का कोई भी सदस्य लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति कि अनुमति लोक महŸव के किसी मामले पर ध्यान दिलाता है और उससे अनुरोध करता है कि वो उस मामले पर अपना पक्ष रखे, तो ऐसे प्रस्ताव को संसद मेें ध्यानाकर्षण प्रस्ताव कहते है। नियम 197 में इस प्रस्ताव कि चर्चा है। ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पर न तो चर्चा होती है न ही मतदान का प्रावधान है इस प्रस्ताव से भी सरकार को कोई खतरा नही है।
अल्पकालीन प्रस्ताव-
कोई भी गैर सरकारी सदस्य किसी भी महŸवपूर्ण मामले पर ध्यान दिलाने के लिए अल्पकालीन चर्चा का प्रस्ताव सदन मेें ला सकता है। लोकसभा के नियम 193 में इस प्रस्ताव कि चर्चा है। लोकसभा अध्यक्ष अल्पकालीन चर्चा के लिए सप्ताह में दो बैठके निर्धारित कर सकता हैै। ऐसी चर्चा सामान्यतः मंगलवार और गुरुवार के दिन ली जाती है। वही राज्यसभा में सभापति सदन के नेता से परामर्श कर चर्चा कि तारिख निर्धारित करते है, इसके तहत चर्चा के बाद कोई मतदान नही होता है।
विशेषाधिकार प्रस्ताव-
जब संसद को यह विश्वास हो जाता है कि मंत्रीपरिषद के किसी सदस्य ने गलत तथ्य पेश कर संसद के विशेषाधिकार का उलघन किया है तो ऐसी स्थिति में सदन के नियम 222 के तहत विशेषाधिकार का प्रस्ताव लाया जाता है।
स्थानापन्न प्रस्ताव-
किसी मुल प्रस्ताव के स्थान पर उसे विकल्प के तौर पर सदन में प्रस्तुत किया जाता है।
कटौती प्रस्ताव- लोकसभा के नियम 209 के अनुसार सरकार या उसके किसी विभाग के द्वारा धन में प्र्रस्तावित कटौती या कम करने का प्रस्ताव लाया जाता हैै। लोकसभा अध्यक्ष को यह अधिकार है कि प्रस्ताव में कटौती कर या नही।
निंदा प्रस्ताव-
ससद के किसी मंत्री के कार्यो को अस्वीकार या निंदा करनी होती है तब सदन में निंदा प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाता है।
धन्यवाद प्रस्ताव-
किसी आम चुनाव के बाद सरकार बनती है तो राष्ट्रपति भाषण देते है, सरकार कि और से राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद राष्ट्रपति को धन्यवाद देने के लिए संसद में धन्यवाद प्र्रस्ताव प्रस्तुत किया जाता है।
दुनिया के अन्य देशों में अविश्वास प्रस्ताव
अविश्वास प्रस्ताव कि देन ब्रिटिश सरकार कि विरासत है। भारत कि संसदीय प्रणाली वेस्ट मिनिस्ट ब्रिटेन कि संसदीय प्रणाली पर आधारित है, वेस्ट मिनिस्टर शैली में परम्पराऐं काफी अहम स्थान रखती है है भारत के अलावा दुनियां के दुसरे अन्य देशों अविश्वास प्रस्ताव का उल्लेख मिलता है, जिनमें अलावा कनाडा, आस्ट्रेलिया में भी वेस्ट मिनिस्टर माॅडल हैै। इस प्रणाली में सरकार तय अवधी से पहले तभी जाती है जब वह खुद इस्तीफा देने का फैसला कर ले या इस्तीफा देने को मजबूर कर हो जाये, विश्वास मत विफल पुरी केबिनेट को त्याग पत्र देना होगा इसमें केवल नीचे का सदन महत्वपूर्ण है उपर का नही।
ब्रिटेन में ही दूनिया का पहला अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया था। 1742 में सर राॅबर्ट वालपोल की सरकार हाउस आॅफ काॅमंस ने विश्वास मत हार गई उसके बाद 10 मार्च 1782 को फ्रेडिक नाॅर्थ कि सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित हुआ। फ्रेडिक नाॅर्थ को अपने पद सेे इस्तीफा देना पड़ा।
2011 में बने फिक्स्ड टर्म पार्लियामेंट्स एक्ट के तहत सदन में समय से पहले चुनाव कराने के दो तरिको मे सें एक अविश्वास प्रस्ताव भी है। अगर हाउस आफ कामंस में अविश्वास प्रस्ताव पारित होने 14 दिन के समय अंतराल में दुबारा बहुमत हासिल करना होता है वरना सदन को भंग कर दिया जाता है।
कनाडा में अविश्वास प्रस्ताव का साधारण नियम है जिसके तहत विधायिका के सदस्य नेता अपनों में से कोई योग्य नेता का चुनाव करते है। यह अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान कर प्रधानमंत्री और केबिनेट को हटाया जा सकता है।
जर्मनी, स्पेन, ईजराइल में प्रक्रिया लगभग एक समान है अविश्वास प्रस्ताव के साथ ही सांसदों को अपने उम्मीदवार का प्रस्ताव भी रखना होता है। इस तरह अविश्वास का प्रस्ताव भी उसी तरह पेश किया जाता है जब नये उम्मीदवार के लिए विश्वास मत पेश होता है। वहां इस अविश्वास को मतदान के लिए रचनात्मक बदलाव कहा जाता है।
ब्रिटिश प्रणाली के विपरित विश्वास मत के गिरने से जर्मन चांसलर को इस्तीफा नही देना होता है, बस शर्ते ये कि प्रस्ताव विपक्ष की तरफ से ना हो।
इटली और जापान- इटली और जापान मेें अविश्वास के प्रस्ताव को पारित कराने के लिए संसद के दोनों सदनों की सहमति जरुरी होती है। इसके लिए किसी भी सदन के लिए 10 फिसदी सदस्य इसका प्रस्ताव दे सकते है। जापान में 1947 में पारित संविधान के अनुच्छेद 69 के मुताबिक प्रतिनिधि सभा में अविश्वास पारित होने पर सरकार को इस्तीफा देना पड़ता है।
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