Arab Geographers अरब भूगोलवेत्ता

Arab Geographers अरब भूगोलवेत्ता

इस लेख में प्रमुख अरब भूगोलवेत्तों के बारे में चर्चा करेगें।

प्रमुख अरब भूगोलवेत्ता

इब्न हाकल 943-973 A.D.)

पुस्तक

  • A Book of Routs and Reams
  •  पृथ्वी की आकृति (Shape of the Earth)
  • संसार के देश (Countries of the World)

ने यूरोप महाद्वीप को एक द्वीप माना 

केस्पियन सागर व उत्तरी सागर का वर्णन किया

इब्न सीना

इब्ने-सीना  का जन्म 980 ईस्वी में बुखारा उज्बेकिस्तान में हुआ। ये एक भौगोलिक, दार्शनिक व चिकित्सक थे। इनको अरब भूगोल का पिता कहा जाता है  एक विश्वकोष बनाया जिसमें भौतिक भूगोल पर्वत मृदा निर्माण एक वर्णन किया।

अलमसूदी (890 956 A.D.)

अलमसूदी का जन्म 896 इस्वी में  बसरा इराक में हुआ। इनको अरब का हेरोडोट्स कहा जाता है। मसूदी ने कैस्पियन सागर को बंद सागर बतायाA सर्वप्रथम नदियों को अपरदन का सबसे महत्वपूर्ण कारण माना। मसूदी ने भारतीय मानसून के बारे में बताया।  अल मसूदी ने पृथ्वी को गोलाभ तथा केन्द्र में माना।
मसूदी नियतिवादी विचारक था।

पुस्तक

  • समय विवरणिका (Annals of Times)
  • सोने के चारागाहे जवाहरातों की खाने (Meadows of Gold and Mines of Precious Stones)
  • उपदेश और निरीक्षण (Exhortation and Inspection)

मसूदी नियतिवादी विचारक था।

अलबरुनी (Al-Biruni,973-1048 A.D.)

अलबिरुनी का जन्म उज्बेकिस्तान के ख्वारिज्म में 15 सितम्बर 973 में काथ ख्वारिज्म सरदरिया नगर के एक जगह है जिसका नाम बीरुन है; में हुआ था। इनके बचपन का नाम रयहन अलबिरुनी था। 
अलबिरुनी शिक्षण कार्य में निपूर्ण था जिसके कारण ही इन्होने विभिन्न विषयों का गहन अध्ययन किया जिसमें धर्म, दर्शन, नक्षत्र, विज्ञान, साहित्य, गणित आदि विषयों का अध्ययन किया। ख्वारिज्म नगर उस समय शिक्षण कार्य के लिए प्रसिद्ध था। 
अलबिरुनी मोहम्मद बिन गजनवी के साथ ही भारत आया तथा भारत में रहकर भारतीय कला कौशल साहित्य ज्योतिष पद्धति आदि अनेक विद्याओं का अध्ययन किया तथा अनेक भारतीय ग्रंथों अरबी भाषा में अनुवाद किया।

पुस्तक

  • इंडिका ग्रंथ की रचना भारत यात्रा के दौरान की  ।
  • किताब उल-हिंद इस पुस्तक की रचना भारत यात्रा के दौरान की।
  • अल कानून-अल-मसूदी।

      ये पुस्तक टॉलमी की प्रसिद्ध पुस्तक अल्माजेस्ट के आधार पर लिखी गई।

प्रसिद्ध पुस्तक रिसाला की रचना की इसमें ध्रुर्वों पर 6 महिने दिन 6 महिने रात के  बारे में बताया।

तारिके-उल हिद कि रचना भारत यात्रा के  दौरान की 

अल-तहदीद पुस्तक में ब्रह्मण्ड की उत्पत्ति के बारे में  बताया

अलबरुनी गजनवी के साथ भारत आया 11वी सदी को अलबरुनी का काल कहा जाता है।

अल इदरिसी (Al-Idrisi or Edrisi,1099-1280) 

अल इदरीसी का जन्म अफ्रीका महाद्वीप मे स्थित मोकक्कों देश में क्वेटा नामक स्थान पर 1099 ईस्वी में हुआ। इनका संबध मोहम्मद साहब के परिवार से होने के कारण स्पेन कोरडोबा में शासन करने का अवसर भी प्राप्त हो पाया यही उनके शिक्षण का कार्य भी पूर्ण हुआ था।
इदरीसी पर टालॅमी के विचारों का स्पष्ट प्रभाव पड़ा।
अल इदरीसी का जन्म अफ्रीका महाद्वीप मे स्थित मोकक्कों देश में क्वेटा नामक स्थान पर 1099 ईस्वी में हुआ। इनका संबध मोहम्मद साहब के परिवार से होने के कारण स्पेन कोरडोबा में शासन करने का अवसर भी प्राप्त हो पाया यही उनके शिक्षण का कार्य भी पूर्ण हुआ था।
इदरीसी पर टालॅमी के विचारों का स्पष्ट प्रभाव पड़ा। इदरीसी ने विश्व को 10 जलवायु भागों में विभाजित किया। अयाताकार प्रक्षेप पर विश्व का मानचित्र बनाया।
इदरीसी ने पृथ्वी की आकृति को गोल बताया तथा पृथ्वी को ब्रह्माण्ड के मध्य बताया और कहा कि भूमध्य रेखा पृथ्वी के बीच से गुजरती है।
इदरीसी के उल्लेखों में यह तों स्पष्ट है वह किसी न किसी विचार से प्रभावित होकर उनके द्वारा कही गई बातों को माना है अरस्तु के विचारो के आधार पर ही उन्होने माना कि उत्तरी ध्रुर्व  अधिक सर्द है टॉलमी के विचारों के आधार पर कहा कि दक्षिण में हिंद महासागर है पूर्व में प्रशांत महासारगर है।
इदरीसी को विश्व के विभिन्न भू-भागों कि यात्रा करने की गहरी रुची होने के कारण इन्होने विश्व के विभिन्न भागों जिसमें मोरक्को इटली फ्रांस जर्मनी ब्रिटेन स्केन्डेविया आदि स्थानों कि यात्रा कि तथा यात्रा का वर्णन अपनी पुस्तक में किया।

पुस्तक

  • अल रुबानी मनोरंजन जो विश्व भ्रमण की ईच्छा रखता हों ।
  • ज्योग्राफीया न्यूबेन्सिस।

इब्न-बतूता (Ibn Battuta,1304-1368)

इब्न बतुता का जन्म  1304 ईस्वी में उत्तरी अफ्रीका के मोरक्कों के टेंजियर्स नामक नगर में हुआ। इब्न बतुता को बचपन से भ्रमण की अधिक रुची होने के कारण इन्होने विश्व देशों का भ्रमण किया इसी कारण इस अरब जगत का मार्कोपोलों कहा जाता है। अपने भ्रमण काल के दौरान ही 1333 में मोहम्मद बिन तुगलक के काल में भारत आया और भारत वह 8 वर्षो तक रहा और भारत के बारे में गहन अध्ययन किया जिसमें सती प्रथा को उन्होने आँखों देखा वर्णन किया। 
भारत से राजदुत बनकर वह चीन चला गया। इब्न बतूता के जीवन के 30 वर्ष भ्रमण काल के रहे।  

ग्रंथ-

  • रेहेला ऑफ ट्रेवल्स (Rehla or Travels)

इस पुस्तक में अपनी समस्त यात्राओं का वर्णन किया था इसके अनुसार विषुवत रेखा के  आस-पास उष्ण जलवायु नही पाई जाती है।

इब्न बतूता को पूर्व के देशों में विश्वास का सूर्य कहा जाता है। 

मोहम्मद बिन तुगलक ने उन्हे चीन में दुत बनाकर भेजा था।

मोहम्मद बिन तुगलक के काल में  भारत आया था।

नीग्रो मूल का था लेकिन इसकी शिक्षा मुस्लिम धर्म के अनुसार हुई।

इब्न-खाल्दून (Ibn-Khaldun,1332-1406) 

इब्न-खाल्दून प्रसिद्ध अरब भूगोलवेत्ता थे जिनका जन्म 1332 में अफ्रीका महाद्वीपीय देश टयूनीशिया में हुआ। इनके द्वारा अपनाई गई अध्ययन पद्धति वैज्ञानिक आधार पर थी जिसके कारण इनकों  निश्चवादी विचारक कहा जाता है।

अंतिम अरब भूगोलवेत्ता।

ग्रंथ- मुकद्दीमह 6 खंडों में है।

  • प्रथम खंड- भूगोल मानव सभ्यता व मानव विज्ञान ।
  • द्वितीय खंड घुमक्कड़ संस्कृति तथा स्थायी संस्कृति में अंतर।
  • तृतीय खंड रावंश व राज्य।
  • चतुर्थ खंड गाँवों व नगरों का जीवन।
  • पंचम खंड व्यवसाय व जीवन यापन के साधन।
  •  षष्टम खंड विज्ञानों का वर्गीकरण।

अपनी प्रसिद्ध पुस्तक मुकद्दीमह में मानव व पर्यावरण के  संबधों की व्याख्या की।

इस लेख में प्रमुख अरब भूगोलवेत्तों के बारे में चर्चा करेगें।

प्रमुख अरब भूगोलवेत्ता

उरोक्त विद्वानों के अतिरिक्त अरब में अन्य कई भूगोलवेत्ता हुये जिन्होने भूगोल के क्षेत्र मत्त्वपूर्ण योगदान दिया जिनमें रमहुर, मुसी अल बाकरी, इखवान सेफा अल याकुबी, जकाउत, अल-बलखी, अलमकदूसी, प्रमुख रुप से योगदान दिया।





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